Muharram
यह घटना 570 ई. की है, जब अरब की सरजमीं पर दरिंदगी अपनी चरम सीमा पर थी। तब ईश्वर ने एक संदेशवाहक (पैगम्बर) भेजा, जिसने अरब की जमीन को दरिंदगी से निजात दिलाई और निराकार ईश्वर (अल्लाह) का परिचय देने के बाद मनुष्यों को ईश्वर का संदेश पहुंचाया, जो अल्लाह का ‘दीन’ है। इसे इस्लाम का नाम दिया गया। ‘दीन’ केवल मुसलमानों के लिए नहीं आया, वह सभी के लिए था, क्योंकि बुनियादी रूप से दीन (इस्लाम) में अच्छे कामों का मार्गदर्शन किया गया है और बुरे कामों से बचने और रोकने के तरीके बताए गए हैं।
Muharram Kaise Banate Hai
मुहर्रम में कई लोग रोजे रखते हैं। पैगंबर मुहम्मद साहब के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता है।
कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं। जो लोग 10 दिनों के रोजे नहीं रख पाते, वे 9 और 10 तारीख के रोजे रखते हैं। यह प्रथा पूरे विश्व में मानी जाती है।
बड़े और छोटे सभी शिया मुसलमान यहां इकट्ठे होते हैं और दस दिन तक वे हुसैन की याद में छाती पीट-पीटकर रोते और विलाप करते हैं। सारे दिन ईश्वर की प्रार्थना की जाती है और गरीबों को खैरात बांटी जाती है। वे इस अवसर पर हुसैन को सम्मान से याद करते हैं और क्रूर याजिद को कोसते हैं।
इस महीने को इबादत का महीना कहते हैं। हजरत मुहम्मद के अनुसार इन दिनों रोजा रखने से किये गए बुरे कर्मो का विनाश होता हैं। अल्लाह की रहम होती हैं, गुनाह माफ़ होते हैं।
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